Thursday, 18 February 2016

इस बदलते हुए दुनिया

कभी कभी सोचता हूँ की दूनीया कितनी तेज़ी से बदल रही है और इस बदलते हुए दुनिया का मैं भी गवाह हूँ
किंतु मैं सोच रहा हूँ की इस पिछले २० सालों मे कितनी तेज़ी से ये दुनिया बदली है ह्मने उस परिवार को देखा है
जहाँ दादा जी दादी चाचा - चाची भाई बहन यानी की संयुक्त परिवार हुआ करते थे मा की लोरी दादी - नानी की कहानी
पापा का डर दादाजी से दोस्ती चाचा का प्यार पूरे गाँव मे किसी के घर मे जा कर इकट्ठे खाने की आज़ादी लहलहाते सरसो
आम के बगीचे मे आम की चोरी ओर सबसे बड़ी चीज़ बच्चों मे मासूमियत थी खेतों मे बैल की घंटी, कोयल की कोक ,
सुबह - सुबह चडियों की चह-चह बारिस के महीने मे कागज की नाव तो कभी कागज के हवाई जहाज़ ,
खेल भी हमरा जिसे हम बचपन मे खेलते थे चुरिया - नुकिया ,डेंगा -पानी , चिड़िया उर , नुक्का छिप्पि , चोर -सिपाही -राजा -मंत्री, कित-कित , बुधिया कबड्‍डी ,खो-खो,गोटी,गोली , गुल्ली -डंडा ,और तो याद नही आ रही है !

दूरदर्शन के कुछ कार्य-क्रम (शक्तिमान , रामायण ,महाभारत ,अलिफलेला ,मोगली )
रेडीओ भी एक अहम हिस्सा था ,

किंतु आज चीज़ें बदल गयी ना मा की लोरी , दादी नानी की कहानी ,नही संयुक्त परिवार , नही वो सुध हवा
कितने व्यस्त हो गये हाँ लोग किसी सब के सब संवेदन-हीन किसी को किसी की परवाह नही है लोगों मे संवाद हीं नही होता है गर संवाद होगा तो फ़ेसबुक और वेट्स - अप पर बात होगी किंतु फ़ोन पे जो सामने है उसकी किसी को परवाह नही है सड़क पर कोई दुर्घटना होती है तो ह्मे क्या लोग वीडियो बनाना सुरू कर देंगे हर कोई फोटोग्राफर है कोई मार रहा है किंतु ह्म पहले लाइव शो बनाना शुरू कर देंगे
मीडिया वाले टी आर पी के पिछे परे हैं बच्चे फेस बुक पर लगे है महिलाएँ सजाने मे व्यस्त हैं और नौजवान क्रिकेट मे
नेता गंदी से गंदी राजनीति मे लोग कहते हैं की ह्म तरक्की कर रहे है किंतु मुझे लगता है हम आज ओर भी पिछे जा रहे हैं और तजी के साथ उस विकास का के क्या मायने जिसमे हमे नेचर से दूर कर दिया लोगों के ईमोसन को ख़तम कर दिया है आज ह्म मे ओर मशीन मे क्या अंतर है ओ भी संवेदना हीन और हम भी संवेदना हीन, हम तरक़्की कर रहे हैं किंतु बहुत सी अच्छी चीज़ें  पिछे छूट  रही है  !

आने वाले कल के लिए हम अपने भवी-श्या के लिए हम अपने आने वाली पीढ़ी के लिए क्या अच्छा छोर कर जाएँगे
जंगल ,पहाड़, नदी ,शेर , बाघ, चीता ,हिरण ,मोर ,गीध ,चील, बाज़ ,मैना,  गोराया ,तोता, कबूतर और भी कई जिनका नाम मै नही लिख सकता क्यूँ की जगह और समय का अभाव है , इनमे से कई विलुप्त हो चुके हैं, और कई विलुप्ति के कगार पे खड़े हैं !
मुझे माहाभारत की  एक कहानी याद आ रही है छोटी सी किंतु सोचने लायक है
एक रात अर्जुन ने सपने मे देखा की एक गाय अपने नव- जात बच्छड़े को जीभ से चाट रही थी और चाट रही थी उसके लगातार चताने से बच्छड़े के कोमल खाल छिल जाता है सुबह उसने श्री कृष्ण से बताते हैं तो उन्हो ने कहा की ये कलयुग के लक्षण है कलयुग मे मा -बाप अपने बच्चे को इतना सुख सुविधा के आदि बना देंगे की अंजाने मे खुद अपने ही हाथो उनका अहित कर बैठेंगे !!

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