Thursday, 18 October 2018

भकचोन्हर !

की रे भकचोन्हर ! एकदम्मे  सठिया गेल बारे का  , आएँ  हम ना जानित रहली की एतना बरहह बोंका बारे उउउ भुटवा तू का बुझत हते उउउ तआ एक नंबर के चोपाह है। भुटटा के अक्किल ओकर घुटना में होखे ला बुझले उउउ भुतबा पतरकी के साथे भाग जाई अअअअअ तू देखते रह जईहे। तोरा बाबा जी के ठुल्लू मिली और का ! गाछी में दुनू के खुसुर फुसुर करइत हम बराबर देखत रहिनि अअ तू साले ओकरा खली खुशामते करे में रहह जइह। केरवाणी से लेके आम के गाछी तक दुनि जाना टाइम बिताबे ला तू साले दलाने में बईठल - बईठल ख़याली पुलाव पकबा।
            का बात काररतारआ भाई दूनु टाइम ओकर भईसीआ के दुहे हमहि जाइले आ ओकर हाथे के गरम गरम चाय साथमे बिस्कुटो मिले ला। हमहि तततअ ओकर भईसीआके परसु प...ल  खि...बे ले गेल रहनी उउउ तत कहत रहे की हमरा से बियाह ना होई त बुढबा इंदा में कूद जाई।
          सब अइसहीं कहे ला ओकर बाप ओकरा खातिर लइका धुंध लेले बा तोरा पतों न चली ओकर बियाह हो जाई।
      ततततत कहा से करि पईसा कहा बा।
उउउउ सब सेटिंग भेल बा लईका के उठा के सादी कक दिहल जाई बुझले
      ना ई न हो सके ला।
अरे भक बुरबक इहे होइ आआ आजे\कल में होखे बाला बा।
      लइका कोण है आउर  कहा के बा लइका की करे ला।
 तू ता कुछो नहिये पूछ खाली जाके ओकर भईसीआ के.. . . . . . . . .   करि हे एक कप चाय पि खुस रहह। ओतने अपन रहले तततत  बतैतन न तोरा के उनका सब पता बा तोहर मन में का चला ता।
     न न हम ओका से सच्चा वाला प्यार करिले उहो हमरा बिना न रह पाई।


            बटेसरा रात में दारू पि के टूल रहे अपन मेहरारू के से मिले सादी के बाद पहिला बार ससुराल ाईल रहे त सोचलक की सरप्राइज दे दू। बुढ़बा भिंडा के कछार पर बैठ के अपन साली के इंतजार करीत रहे अन्हारीआ रात कुत्बा सब दुरा लगा रहल बा सियार झींगुर बैंड बजाबैत रहे भगजोगनी भुकुर भुकुर कर रहल बा मन में बटेसर सोचित रहे की जतरा त त पहिलही खराब भेल बा उउउ करिआ बिलाई रास्ता काट देलक पता ना का होइ।

दू -चार जाना आएल आ मुँह बांध के ओकरा लेट घुसे खाये भर के जमा देहलक आ उठा के ले गेल ओ में ओकर दुनू साला भी रहे ो हो बेचारा के कुछु सोचहु के टाइम नन मिलल आ बोलतक कथी मुहो त बांधले रहलक वोइसे भी इतना कुचईला के बाद बेचारा का बोली हो छुपे रहे में अपन भलाई समझ लक। चुप चाप करीत गेल जैसे लो कहलन ई ला बियाह हो गेल। जब तक धनेसरी पहुंचलक तब तक पतरकी ओकर सुउतीन बन चुकल रहे।  

 अरे बाप रे बाप इ का हो गइल ! इधर बटेसरा भी ताव मारे लागल , उउउ सरबा पतरकी के लवर मुंगेरिआ
के त सांप छुछुन्दर के हाल बा ना निगल सके ला ना उगल सकी। एक साथै कै जो दिल तुटल बा लेकिन ई सब में सब से जादे खुस केहू बा त उउउ बटेसर बाबू बारन। धनेसरी के दुनू भाई बड़े छोटे के हाल खुदे समझ जाई जा

     तू तूभाई ना कसाई बारअ हमरा के ई  फांसी दे देहलक कुछ देर बाद पुरे गांव में सन्नाटा सब के सब किम कर्तव्य विमूढ़   !

कि रे लेरहबा दुनू बहनोइआ के दूसर बियाह करा देले ! सारह कहीं के ,बोल न रे साला कुछो  त बोल. . . . . 
       ना उ पप्पा हम तअअ . . . .......हम तअअ . . ...........
ना रे तू तआ कुछो बोलबे मत कर ......  


का उत ुत कइले बारे ाएँ।
उउउ का है की हमनी उनका पहचान ली ना ,  आ उहो कैसे पहचानती बस एक बार बियाहे के देखले रही ऊपर से पांच साल बाद देखनी उहो अन्हारी में ,बताबा आ उनको से तानी पूछ जनि उउउ अन्हारी में बुढ़वा ईंडा पे का करीत रहथ। तनी पूछ उनका से।

       अरे छोटका उउउ लइकबा कहा रह गेल ससुरी के।
होइहन किधरो पी के लुरकल सरअउऊ ! अब उनका से का हमनी के त जे होए के रहल से हो गेल।

घोच है उउउउ ससुरी सुखरिआ। पल्टनमा के साथे बैठ के दारू के चक्कर में साला हमनी के काम गर्बरा दिहलक।
खैर जो होना था सो हो गया अब आगे क्या ?

एक सज्जन जो की जेंटिल मैन टाइप के थे -  हम इस शादी को नहीं मानते !

धनेशरी उचाव - त की बिचार तोहार आएं धनेसरी के अब का होइ जे हो गेल से हो गेल, आज से पतरकी हम्मर बहिन न हम्मर सौतिन हिआ। 

आ तोहनी के पाप के इहे सजा बा हम अप्पन जगह आज से पतरकी के दे दिहेब। 

अरे ईई का कहअ तारु , तू पागल हो गेलु का। 

ना हम पूरा होश में बानी। 

दीदी हमरा माफ़ी कई दा ये में हम्मर कोई गलती न बा 
अरे पगली ! तू कहे माफ़ी मंगत हऊ,हम सब समझ हिन् ........  
आ सुनी आहाँ हमसे प्यार करेली न ता हम्मर बात मानी। आज से हम अकेले न अप्पन सौतिन के साथे हीं रहब।

गलती जब किसी एक की हो तो दबाया जा सकता है यहाँ तो पुरे समाज की है इसे झुठलाया भी नहीं जा सकता है और कुछ गलती ऐसे होती है जिसे सुधारा भी नहीं जा सकता। एक साथ कई दिल तूट चुके है सब अपनी पसंद के दर्द भरे नग्मे सुन कर मन बहला रहे है और उन नग्मों में खुद की तस्वीर देख रहे है।


जिंदगी हमारे हिसाब से नहीं चलती है इसका हिसाब अलग है हम कुछ प्लानिंग करते हैं किन्तु होता वही है जो ये प्लानिंग करती है






































       





























    

Friday, 20 April 2018

ब्रह्माण्ड


एक बात तो है , जैसा  कि मुझे लगता है , ना हम ब्रह्मांड इस ब्रह्मांड से अलग हो सकते हैं और ना ये हमसे अलग हो सकता है। और इस ब्रह्माण्ड को जानने के लिए हमे बाहर नही बल्कि अपनी अंदर झाकना होगा हम खुद इस ब्रह्माण्ड को जान जायेंगे क्यू की हमारा शरीर इस ब्रह्माण्ड का छोटा रूप है। जैसे इस दुनिया में हम पैदा होकर हमे जो भी मिला यही मिला और लास्ट में हम मर कर इसी में मिल जायेंगे , वैसे हि हमारे पैदा होते हि एक नयी दुंनिया की रचना हो जाती है खुद हमारे अंदर कई सारे जीव पल रहे हैं और उनकी दुनिया हम हैं। हमारे साथ वो भी ख़तम हो जायेंगे तो मेरे ख्याल से इस ब्रह्माण्ड को जानने के लिए हमे सुदूर अंतरिक्ष में जाने की जरुरत नहीं है हमें तो बस इस ब्रह्माण्ड की सबसे छोटी चीज को जनना होगा और वही हमे पुरे ब्रह्माण्ड के बारे में बताएगा।।

       उस छोटी सी कण में हि समूचे ब्रह्माण्ड का रहस्य छिपा है , और वैसे तो एलियन का जिक्र हमरे ग्रन्थ में भी है जिस पर रिसर्च की आवस्यकता है और जहा तक मुझे लगता है की ये ब्रह्माण्ड किसी और ब्रह्माण्ड के अंदर और वो किसी और ब्रह्माण्ड के अंदर और ये एक सिलसिला है।  हो सकता है ये मेरी कल्पना हो या सायद हकीकत।  ऐसा भी तो हो सकता है की जीवन के नियम को देखे तो ये ब्रह्माण्ड जीवित है इसमें जान है )
    
      वैसे भविष्य के लीये विज्ञान की चुनौती है वायर लेस इलेक्टीरिक ,बज्रपात की इनर्जी को उपयोग में लाना , पारदर्शी धातु का निर्माण ,ऐसा यन्त्र जो खुद से ऊर्जा उत्पन्न कर सके , एक ऐसे धातु की खोज जो किसी भी तापमान पर नस्ट ना हो , इस जीवन के लिए ऊर्जा के विकल्प यानि की अन्न का विकल्प
 इमेज रीडर टेक्स्ट ,यूजर फ्रेंडली कंप्यूटर जो आपकी आवाज सुन कर काम करे ,जो आपके दिमाग को पढ़ सके और फिर काम करे आपके हाव् भाव समझ सके ,कितना बड़ा डेटा हो आसानी से ट्रांसफर हो सके तेजी से ,बिना क्वॉलिटी कम किये फाइल को छोटा किया जा सके ,मैमोरी फूल होने का झंझट न हो

Monday, 29 February 2016

बस इक रात का सपना था

कल रात ह्मने एक सपना देखा है
हमने सपने मे देखा की मै दूसरे प्ल्नेट पर गया हूँ और ह्म  इतने डेवलप कर गये हैं की एक एक ग्रह से दूसरे ग्रह पर जाने मे बहुत ही कम समय लगता है बस कुछ हीं मिनट
वहाँ ह्मने देखा की इस धरती के कई लोग वहाँ रहते हैं और पूरे ग्रह पर सिर्फ़ एक हीं भाषा बोली जाती है इंसान तो इंसान जानवर भी हमसे हमरी भाषा मे बाते कर रहे हैं वहाँ पर कुछ अजीब किस्म के जीव भी देखने को मिले
किसी का धर इंसान का और सर जानवर का , किसी का धर जानवर का तो सर इंसान का ,
और भी कई विचित्रा जीव देखने को मिले जंगल नदियाँ पक्षी सब के सब विचित्र और यहाँ के अपेक्षा वहाँ शांति बहुत है
लोग शुकून से रहते हैं
किंतु जब मैं उपर आसमान की तरफ देखता हूँ तो मेरे आश्चर्या की सीमा ना रही मैं देखता हूँ की आसमान मे एक नही कई सूर्य दिख रहे हैं जब मैने गिनती चालू की तो एक - दो - तीन ------पूरे १० सूर्या अब मैं सोचने लगा की वहाँ हमारे यहाँ एक सूर्य ही काफ़ी  है और गर्मी के दिनो मे कितनी अधिक गर्मी लगती है और यहाँ १० सूर्य फिर भी ना अधिक गर्मी और ना हीं अधिक सर्दी हाँ प्रकाश इतना आदिक की कहना मुसकील आँख चौंधिया जाए फिर मैने सोचा की रात तो सायद नही होती होगी किंतु मेरा अनुमान एक-दम ग़लत रात भी होती है किंतु वहाँ का हिसाब किताब एक दम अलग है कभी कभी और एक दम छोटी होती है तीन से चार घंटे की वहाँ की दिनचर्या एक दम  अलग

   अब मैं सोचने लगा की मैं किस लोक मे आ गया हूँ एक दम विचित्र लोक है किंतु और ज़्यादा कुछ पता लगाता उससे पहले सुबह हो चुकी थी और किसी ने मुझे जगा दिया और मैं अपना विमान पकर कर सीधा इस लोक मे आपहुँचा सीधा अपने बिस्तर पे कंबल के नीचे कितु सपना कुछ - कुछ याद था और जो भी याद था उसे मैंने लिख दिया कितु सपने तो कई आते हैं किंतु ये कुछ खास लगा क्यूंकी मैं जो भी रात में सपने देखता हूँ शुबह भूल जाता हूँ कितु ये सपना मुझे याद था और मुझे इस सपने मे कुछ खास लगा मैं बार बार मेरे दिमाग़ मे ये सब घूम रहा है मैं सोच रहा हूँ की क्या ये सब मुमकिन है लगता तो नही किंतु इस अनंत ब्रह्मांड मे कुछ भी मुमकिन हो सकता है क्यूँ की ये अनंत है कहा से सुरू और कहा ख़तम होगा कोई नही जनता हम इस लिए कुछ भी मुमकिन हो सकता है इस अंतरिक्ष मे , हम इसके बारे मे कुछ भी नही जानते भले ही विज्ञान ये दावा करे की हम बहुत कुछ पता लगा लिए हैं कितु सचाई यही है की अभी भी हम इसके बारे मे कुछ नही जानते हैं जो जानते हैं वो बहुत  ही अल्प है और हम हमेशा अल्प ही जानेंगे हम अपने हिसाब से भले हीं अधिक जान जाएँ किंतु इस अनंत ब्रह्मांड को हम अल्प हीं जान पाएँगे

    ये सब मेरा कल्पना नही था बस इक रात का सपना था किंतु विचित्र था और शायद ये संभव भी हो कितु अभी कुछ कहना मुसकील है

Thursday, 18 February 2016

इस बदलते हुए दुनिया

कभी कभी सोचता हूँ की दूनीया कितनी तेज़ी से बदल रही है और इस बदलते हुए दुनिया का मैं भी गवाह हूँ
किंतु मैं सोच रहा हूँ की इस पिछले २० सालों मे कितनी तेज़ी से ये दुनिया बदली है ह्मने उस परिवार को देखा है
जहाँ दादा जी दादी चाचा - चाची भाई बहन यानी की संयुक्त परिवार हुआ करते थे मा की लोरी दादी - नानी की कहानी
पापा का डर दादाजी से दोस्ती चाचा का प्यार पूरे गाँव मे किसी के घर मे जा कर इकट्ठे खाने की आज़ादी लहलहाते सरसो
आम के बगीचे मे आम की चोरी ओर सबसे बड़ी चीज़ बच्चों मे मासूमियत थी खेतों मे बैल की घंटी, कोयल की कोक ,
सुबह - सुबह चडियों की चह-चह बारिस के महीने मे कागज की नाव तो कभी कागज के हवाई जहाज़ ,
खेल भी हमरा जिसे हम बचपन मे खेलते थे चुरिया - नुकिया ,डेंगा -पानी , चिड़िया उर , नुक्का छिप्पि , चोर -सिपाही -राजा -मंत्री, कित-कित , बुधिया कबड्‍डी ,खो-खो,गोटी,गोली , गुल्ली -डंडा ,और तो याद नही आ रही है !

दूरदर्शन के कुछ कार्य-क्रम (शक्तिमान , रामायण ,महाभारत ,अलिफलेला ,मोगली )
रेडीओ भी एक अहम हिस्सा था ,

किंतु आज चीज़ें बदल गयी ना मा की लोरी , दादी नानी की कहानी ,नही संयुक्त परिवार , नही वो सुध हवा
कितने व्यस्त हो गये हाँ लोग किसी सब के सब संवेदन-हीन किसी को किसी की परवाह नही है लोगों मे संवाद हीं नही होता है गर संवाद होगा तो फ़ेसबुक और वेट्स - अप पर बात होगी किंतु फ़ोन पे जो सामने है उसकी किसी को परवाह नही है सड़क पर कोई दुर्घटना होती है तो ह्मे क्या लोग वीडियो बनाना सुरू कर देंगे हर कोई फोटोग्राफर है कोई मार रहा है किंतु ह्म पहले लाइव शो बनाना शुरू कर देंगे
मीडिया वाले टी आर पी के पिछे परे हैं बच्चे फेस बुक पर लगे है महिलाएँ सजाने मे व्यस्त हैं और नौजवान क्रिकेट मे
नेता गंदी से गंदी राजनीति मे लोग कहते हैं की ह्म तरक्की कर रहे है किंतु मुझे लगता है हम आज ओर भी पिछे जा रहे हैं और तजी के साथ उस विकास का के क्या मायने जिसमे हमे नेचर से दूर कर दिया लोगों के ईमोसन को ख़तम कर दिया है आज ह्म मे ओर मशीन मे क्या अंतर है ओ भी संवेदना हीन और हम भी संवेदना हीन, हम तरक़्की कर रहे हैं किंतु बहुत सी अच्छी चीज़ें  पिछे छूट  रही है  !

आने वाले कल के लिए हम अपने भवी-श्या के लिए हम अपने आने वाली पीढ़ी के लिए क्या अच्छा छोर कर जाएँगे
जंगल ,पहाड़, नदी ,शेर , बाघ, चीता ,हिरण ,मोर ,गीध ,चील, बाज़ ,मैना,  गोराया ,तोता, कबूतर और भी कई जिनका नाम मै नही लिख सकता क्यूँ की जगह और समय का अभाव है , इनमे से कई विलुप्त हो चुके हैं, और कई विलुप्ति के कगार पे खड़े हैं !
मुझे माहाभारत की  एक कहानी याद आ रही है छोटी सी किंतु सोचने लायक है
एक रात अर्जुन ने सपने मे देखा की एक गाय अपने नव- जात बच्छड़े को जीभ से चाट रही थी और चाट रही थी उसके लगातार चताने से बच्छड़े के कोमल खाल छिल जाता है सुबह उसने श्री कृष्ण से बताते हैं तो उन्हो ने कहा की ये कलयुग के लक्षण है कलयुग मे मा -बाप अपने बच्चे को इतना सुख सुविधा के आदि बना देंगे की अंजाने मे खुद अपने ही हाथो उनका अहित कर बैठेंगे !!